Wednesday, July 27, 2011

क्या यही प्यार है


 क्या यही प्यार है
जिन्दगी की धुवांधार बारिश में,
कमल पर पड़ी ओस की बूंद सा,
एक अहसास,
क्या यही है प्यार......?

जिन्दगी के काँटों के बिछोने में,
फूलों की पखुडियों सा,
एक अहसास,
क्या यही है प्यार........?

जिन्दगी के साफ-सुथरे मरुस्थल में,
गुलाबों से महकते गुलिस्ताँ सा,
एक अहसास,
क्या यही है प्यार.........?

खुदगर्ज जीवन में,
खुद को भी खुद का
नहीं अहसास,
क्या यही है प्यार..........?

जिन्दगी की अंधी दौड में,
खुशनुमा ठहराव का,
एक अहसास,
क्या यही है प्यार..........?

दोस्तों की भीड़ में भी,
घुटन,
अकेले, खालीपन का,
एक अहसास,
क्या यही है प्यार..........?
  
न आगाज का पता,
न अन्जाम का ख्याल,
हर पल, हर जगह,
बस होता है,
तेरा ही अहसास,
क्या यही है प्यार.........? 

Sunday, July 3, 2011

पूर्णांगिनी


      पूर्णांगिनी
मैं अधूरा सा भटकता फिर रहा था,
एक भ्रमर सा |
कभी एक तो कभी दूसरे,
रंग-बिरंगे फूल पर,
मचलता था मन मेरा |
कभी एक तो कभी दूसरी,
खुशबू लुभाती थी मुझे |
मैं असमंजस में पड़ा,
यों ही भटकता फिर रहा था,
बस अधूरा |
फिर मिली तुम,
और वे रंग-सौरभ,
जिन्हें मैं,
खोजता फिर रहा था,
सब तुममें मिल गए |
और फिर जो,
मैं अधूरा सा था अब तक,
अचानक ही पूर्णता पा गया |
इसलिए,
वे लोग जो कहते तुम्हें अर्धांगिनी,
हैं गलत,
सत्यता में,
तुम तो हो,
बस मेरी पूर्णांगिनी |