Monday, April 1, 2013

ज्ञान


      ज्ञान
गधे पर लादे गए नमक सा,
जानकारियों के पाण्डित्य का पुलन्दा,
जिससे गधा तो अपनी जान छुड़ाना चाहता है,  
क्योंकि वह जानता है, कि-
यह तो है केवल एक बोझा |
लेकिन,
जिससे स्वयं को आभूषित समझ,
अपने आप को समझदार समझने वाला हर इन्सान,
उसे,
हीरे-जवाहरात सा दिन-रात ढोता,
जिससे वह सदैव ही,
सिर्फ़ व सिर्फ़ दबा होता,
क्या यही सच में ज्ञान होता ?
या,
जब हम,
जानकारीयों के इस नमक को,
प्रेम की पावन गंगा में गला,
स्वयं को एकदम खाली हुआ पाते,
और फिर,
उसमें डुबकियाँ लगा,
सत्य के असली हीरे पाते,
सच्चा ज्ञान होता !!!