मनुष्य- शाकाहारी या मांसाहारी ?
प्रकृति में सब कुछ नियमबद्ध है | उसमें जो
कुछ भी घटता है उसको वैज्ञानिक धरातल पर
कसा जा सकता है | जब भी कोई उसके विरुद्ध जा उससे छेड़छाड़ करता है तो उसके
दुष्परिणाम उसके साथ-साथ अन्य सभी को भी भोगना पड़ते हैं |
मानव, प्रकृति की सबसे परिष्कृत रचना है |
जिसमें उसने बुद्धि का एक ऐसा भण्डार भर दिया है कि यदि वह उसका उपयोग विवेक से
करे तो इस धरती को स्वर्ग भी बना सकता है व स्वयं का उत्थान कर ईश्वरत्व भी
प्राप्त कर सकता है | किन्तु मनमौजी मनुष्य ने उसका उपयोग अपने स्वार्थ के लिए
ज्यादा किया | वह अपनी बुद्धि का उपयोग तथ्यों को तर्कों से झुठलाने में ही करने
में अपनी शान समझता आ रहा है | लेकिन सत्य के हीरे को चाहे जितना भी तर्कों की
तहों से छुपा लो, वह झूँठ का पत्थर नहीं होता | उसकी चमक उसे जग-जाहिर कर ही देती
है |
ऐसे ही कुछ तथ्य हैं जो शाकाहारी व
मांसाहारी प्राणियों में स्पष्ट फर्क बतलाते हैं | मैं उन्हें आपकी जानकारी के लिए
यहाँ दे रहा हूँ :
[१] मांसाहारी
प्राणी पानी चाटते हैं जबकि शाकाहारी पानी पीते हैं |
[२] मांसाहारी
प्राणीयों के ‘केनाइन’ दांत ज्यादा लंबे व नुकीले होते हैं, जिनसे वे मांस चीरते-फाडते हैं
जबकि शाकाहारियों के ‘केनाइन’ छोटे व बहुत
ही कम नुकीले होते हैं |
[३] मांसाहारियों
की आँत की लम्बाई कम होती है क्योंकि वे दूसरों के द्वारा पचा-पचाया व संचित किया हुआ खाना खाते हैं जबकि
शाकाहारियों की आँत की लम्बाई काफी ज्यादा होती है क्योंकि उन्हें अपना खाना खुद
ही पचाना होता है |
[४] मांसाहारियों
का पेट छोटा होता है जबकि शाकाहारियों का पेट बड़ा होता है |
[५] मांसाहारियों
के नाख़ून मजबूत, लम्बे व नुकीले होते हैं, जिनका इस्तेमाल वे शिकार करने व उसको
चिर-फाड़ करने में करते हैं | जिन्हें वे उपयोग न होने पर मोड़ कर पैरों की गद्दीदार
पगथलियों के नीचे छुपा लेते हैं जबकि शाकाहारियों के नाख़ून छोटे व गोलाई लिए होते
हैं जिन्हें वह मोड़ नहीं सकता और न ही
उनकी पगथलियाँ गद्दीदार होती है |
गाय,
बकरी, घोड़ा, हिरण, नन्हां खरगोश, लम्बा जिराफ, शक्तिशाली व विशाल हाथी आदि सभी
शाकाहारी जानवर भी जानते हैं कि भोजन अपने शरीर के लिए अपनी प्रकृति अनुसार करना
चाहिये ना कि मनानुसार सिर्फ़ स्वाद के लिए | क्योंकि अपनी प्रकृति के विरुद्ध जा
सिर्फ़ स्वाद के लिए कुछ भी खाना अपने हाथ से अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा
है, जिसके दुष्परिणाम से सभी वाकिफ़ हैं |
अब आप स्वयं ही मनुष्य के बारे में अपने
विवेक से निर्णय करें कि वह शाकाहारी है या माँसाहारी |
डॉ. द्वारका बाहेती 'द्वारकेश'