भावों का दर्पण
छुपा लो चाहे जितना मन में,
छुपा नहीं पाता है चेहरा |
दिल का हाल बता देता है,
भावों का दर्पण है चेहरा |
शांत, गंभीर जो होता चेहरा,
सागर सा लगता है गहरा |
भावनाओं से नयनों में, तब –
प्यार सा उमड़े तूफां गहरा |
उलझा माथा रेखाओं में,
सिकुड़ापन चिंता बतलाती |
गुस्से सी भौहें जब उठती,
लाल-लाल हो आँख दिखाती |
भाव-विभोर होंठ हिलते, पर –
शब्द न कोई बाहर आता |
पवित्रता सा पावन जल, बन-
प्रेम-अश्रु, नयन छलकता |
दुःख सी नाक सिकुड़-सिकुड़ कर,
गम को अन्दर-अन्दर पीती |
झरनों जैसे नयनों से यह,
आँसू बन झर-झर ही बहती |
खुशी से प्रस्फुटित होंठ जब खुलते,
मुस्कान बन गालों पर खिलते |
गुदगुदी से नरम गालों पर,
अट्हास आँसू बन दीखते |
कोमलता से नाजुक होंठ,
प्यार का जाम जब टकराते |
शर्म सी पलकें, झुक मदहोश हो,
प्यार लुटते, प्यार लुटाते |