होली पर प्रेमी-प्रेमिका की छेड़छाड़
प्रेयसी –
पिचकारी से रंगन की, काहे बौछार करत|
कचनारी अंगन पे, मोहे है मार पड़त |
भीग गई चुनरिया, लाज से मैं हूँ मरत |
कजरारे नयन बची, काहे मोरी लाज हरत ?
सर-सर-सर, सर-सर-सर, स र र र र, स र र र र,
सर-सर-सर, सर-सर-सर, स र र र र ,स र र र र |
प्रेमी –
होली के रंगन में, मोर सी तू है लगत |
कचनारी अंगन पे, मेरो जियो गयो भटक |
भीगी चुनरिया पे, मैं तो मरुँ हर कीमत |
नयनन से मोहे पिला, काहे तू लाज करत ?
सर-सर-सर, सर-सर-सर, स र र र र, स र र र र,
सर-सर-सर, सर-सर-सर, स र र र र ,स र र र र |
अति सुन्दर मान्यवर| होली की हार्दिक शुभकामनायें |
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना..होली के रंगों में रंगी...खुबसुरत भावाभिव्यक्ति...........लाजवाब।
ReplyDelete*काव्य-कल्पना*
*गद्य सर्जना*
धन्यवाद सत्यमजी.
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