सफल – जीवन
१
सोचते ही रहते हैं, क्या करें, कैसे करें ?
कौन सी राह चल, यह जीवन सफल करें ?
कोई भी एक राह ले, चलें अडिग यदि अनवरत |
मिल ही जायेगी मंजिल, होगा यह जीवन सफल |
२
फूटी हुई बाल्टी में भरा जीवन,
निकलते ही जा रहा जिससे हरक्षण |
आस भरे रहने की छोड़ कर,
प्यास दूजों की मिटाऐ यदि हम |
तो सफल होगा यह जीवन |
३
सुख-दुख जीवन में आता-जाता,
सुख का छोटा दुख का लम्बा समय कहाता |
सुख-दुख इक परछाई इक द्वन्द,
यह असल पहचान लें यदि इस जनम –
तो सफल होगा यह जीवन |
४
फूल डाली से जुड़े हों तो लुभाते,
अकड़ कर टूटते तो मुरझा जाते |
और वे पूर्णता का फल कभी भी बन न पाते |
नम्रता से झुका फल बन, भूख दूजों की मिटायें यदि हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
५
धीर धर अमावस का चन्द्रमा,
होले-होले अपने पथ बढ़, पूर्णिमा बन जाता |
और अपनी चांदनी सर्वत्र वह है फैलता |
पूर्णिमा बन अंधेरा दूजों का मिटायें यदि हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
६
कीड़े- मकोड़े, चील-कौवे आते-जाते,
तेरा-मेरा, कॉव-कॉव करते, लड़ते और खाते |
ग्रंथियाँ सब स्वार्थ की खोलकर,
त्याग निर्भेद हो यदि कर सकें हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
७
कुए, ताल, तलैया से हम बंधे सब,
असीम सागर नहीं मिलता जब तलक |
तोड़ कर स्वनिर्मित बाँध सब,
प्यार का अनन्त-सागर बना सकें यदि इस जीवन –
तो सफल होगा यह जीवन |
८
कस्तूरी सा छुपा वह हर कण,
ढूंढते फिर रहे हर जगह जिसे हम |
राख ऊपर से हटा अंगार के,
पहचान, उसमें तपा सकें यदि जीवन –
तो सफल होगा यह जीवन |
९
कौन किसका साथ देता इस जहां,
आते अकेले और सभी जाते अकेले |
जन्म से मृत्यु तक का यह सफ़र,
यदि सूर्य सा पूरा अकेले कर सकें हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
१०
चन्द्र-कलाओं सा घटता-बढ़ता यह जीवन,
कभी अमावस तो कभी बनता पूनम |
आस पूनम ही बने रहने की छोड़ कर,
रोशनी प्यार की बाँट कर, खाली हो सकें यदि हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
११
सूर्य से निकली किरण सा यह जीवन,
तोड़ कर जिसको अँधेरा बनाने में लगे हम |
छोड़ कर स्वछन्द उसे स्वाभाविक,
प्रकाश फैला फिर सूर्य में सिमट जाने दें यदि हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
१२
हरे-भरे वृक्ष सा यह जीवन,
फूल-फल जिस पर लदे रहते हरदम |
आस लदे रहने की छोड़ कर,
छाँव दे, भूख दूजों की मिटायें यदि हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
१३
दर्पण सा स्वच्छ, सुन्दर यह जीवन,
धूल-मिट्टी, गंदगी जिस पर रही जम |
दूसरों की गर्द दिखाना छोड़कर,
साफ़ दर्पण स्वयं का यदि रख सकें हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
१४
नदी के पानी सा जीवन,
बहता ही रहता अथक हरदम |
चाह अपने अस्तित्व की छोड़कर,
अनन्त सागर में मिल सकें हम यदि इस जनम –
तो सफल होगा यह जीवन |
१५
कोयले से भी कला, कलुषित यह मन,
साबुन से भी धोया पर न बदला रंग |
जन्म-स्थल ईश-अग्नि में जला,
रंग उसका अग्नि सा यदि कर सकें हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
१६
अंजान, अँधेरे पथ बढता यह जीवन,
गड्डे, पत्थर, हीरे-मोती क्या उस पथ? न जाने हम |
प्यार का दीप जला वह पथ,
प्रकाशित दूसरों के लिए यदि कर सकें हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
१७
प्रभु ने दिया छलनी सा यह जीवन,
थोथा, अच्छा, घुन लगा जिसमें भरा सब इस मन |
अपने कर-कर्मों से हिला यह छलनी,
सत संजो बाकी सभी गिर जानें दें यदि हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
१८
उद्गम से संगम तक नदी सा यह जीवन,
टेढ़ी-मेढ़ी, बाधा भरी राह जिस पर चल रहे हम|
बाढ़, सूखा, गंदगी, बांध भी हैं राह में,
नदी सा निर्लिप्त बढ़, सागर-मिलन यदि कर सकें हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
१९
धरती पर पड़े अनगिनत अनघड़ पत्थर,
चोंट पहुँचाते, कभी किसी को ठोकर |
शिल्पी सा छिनी-हथोड़े से उसे घडकर,
आकार इक मूरत का यदि दे सकें हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
२०
मकड़ी से जाल में फसा जीवन,
जिसमें उलझते ही जा रहे हम |
हाथ- पाँव फडफडाना छोड़कर,
काट बन्धन जाल के, यदि मुक्त उससे हो सकें हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
२१
क्रोध, घृणा की आग के कुए भरे अन्दर,
बाल्टी बन कोई और निकाले जिसे बाहर |
इन सभी कुओं को प्रेम-जल से बुझा,
फिर उसी जल से बाल्टी को भी भर सकें यदि हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
२२
कोयले की खान सा बना हुआ यह जीवन,
छाया हुआ जिसमें अँधेरा गहनतम |
जगमगाते सच्चे हीरे की रोशनी बन,
मिटा सकें यह तम यदि हम इस जनम –
तो सफल होगा यह जीवन |
२३
गंदे, गहरे, बंधे सरोवर सा बना हुआ यह जीवन,
काई, कचरा, कीचड़ जिसमें रहा जम |
बाहर निकल इन सबसे सरोवर के,
कमल सा फूल बन यदि खिल सकें हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
२४
धन-दौलत की कब्र में धसता हुआ सा यह जीवन,
गिद्ध, चील, कौवे मंडरा रहे जहाँ हरदम |
परमार्थ की संजीवनी देकर उसे,
चैतन्यमय बना सकें यदि हम इस जनम –
तो सफल होगा यह जीवन |
२५
उपवन सा रंगीन, खुशबुनुमा यह जीवन,
मरुस्थल जिसको बनाने में लगे हम |
त्याग की खाद व प्रेम-जल से सींच कर,
अमन के फूल खिला सकें यदि हम इस जनम –
तो सफल होगा यह जीवन |
२६
निसर्ग सा आल्हादित यह जीवन,
मरघट सा सुनसान जिसको बनाने में लगे हम |
सबको पीछे धकेल आगे बढने की अंधी-दौड छोड़कर,
बन एक फूल माला का उसे सुशोभित कर सकें यदि हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
२७
सुन्दर, आकर्षक खोखे सा यह तन,
जिसमें रखे बहुमूल्य साज इन्द्रियाँ,बुद्धि व मन |
आस खाली खोके की छोड़कर,
साजों के सुर मिला, जीवन-संगीत बना सकें यदि हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
२८
दीपक में भरे तेल सा यह जीवन,
जिसमें पड़ी बाती जल रही हरदम |
जिंदगी बस यों ही बिताना छोड़कर,
रोशनी प्यार की निस्वार्थ ही फैला सकें यदि हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
२९
प्रियतम ने पहनाए सुन्दर वस्त्र,
फिर फैंक दिया मुझको भवसागर मध्य |
गीले न हों वस्त्र, बोले वह जो खड़ा तट पर,
कमल-पत सा पानी से लगाव रख, जी सकें इस जग यदि हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
३०
पंखे की हवा से डर बंद खिडकी से चिपकता परदा,
खुली हवा में मचल-मचल लहरा रहा |
खोल कंजूस की अंटी में बंधे धेले सा मन,
प्यार के खजाने को लुटा सकें यदि हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
३१
कीचड़ में कीड़े सा कुलबुलाता, फिर भी उसमें धंसता हुआ यह मन,
पानी में सुन्दर, सजीव पर मछली सी बाहर तडफन |
दलदल में चाहे धंसा पर बाहर एक कमल सा,
कमलपत पर थिरकता व चमकता पर निर्लिप्त बूंद सा ,
बना सकें यदि यह जीवन –
तो सफल होगा यह जीवन |
३२
पेन में भरी स्याही सा यह जीवन,
यदि रखें यों ही तो सूख जाती स्वयं |
लिख कोरे कागज पर सत्-कर्म की स्याही से,
बना सकें उसे एक अमर महाकाव्य यदि हम इस जनम –
तो सफल होगा यह जीवन |
३३
हर रोज बदलती तारीख सा यह जीवन,
दिनों से बदलते कभी खुशी कभी गम |
बचपन, जवानी, बुढ़ापे से बदलते मौसम,
सदाबहार बना सकें इसका हर पल यदि हम इस जनम –
तो सफल होगा यह जीवन |
३४
अंधकार चारों ओर फैला हुआ,
चीटियाँ पर निकाल हर तरफ रही मंडरा |
प्यार के लिए पतंगे रहे बलि चढ़ा,
बुझता दीप तम मिटाने रोशनी रहा बढ़ा |
खुद जल कर दीप सा, दूसरों को रोशनी दे सकें यदि हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
३५
पानी में उठते बबूले से सभी,
छोटे-बढ़े, देर-सवेर फूटते हैं सभी |
पानी से बन फिर मिट बनते जल,
चाहे नदी, तालाब, सागर या गटर, पोखर |
पानी से उठ, बन बादल फिर बरस,
शांत तृष्णा दूसरों की कर सकें यदि हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
३६
रेशम के कीड़े के रेशमी जाल सा यह मन,
दूसरों को फ़साने जिसे बनाते अक्सर हम |
भूल रहे उसमें फस मरेंगे एकदिन स्वयं,
इन जालों की गुत्थियाँ सुलझा सकें यदि हम इस जनम –
तो सफल होगा यह जीवन |
३७
सुख-दुख दो किनारे, नदी सा यह जीवन,
बहती ही रहती जो हर पल हर क्षण |
किनारों के थपेड़ों को सहन कर,
आगे बढ़ कर सकें यदि सागर मिलन –
तो सफल होगा यह जीवन |
३८
प्यार की खुशबुओं से भरा जीवन,
बंद कर रखा जिसे लगा अहम् का ढक्कन |
खोल कर अपने ही हाथों उसे,
निश्छल प्रेम की खुशबू बिखर जाने दें यदि हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
३९
नदी के प्रवाह सा यह चंचल मन,
बहते ही जा रहा जिसमें जीवन |
प्रमथन वेग में बहना छोड़ कर,
यदि बाँध एक विवेक का, बाँध सकें उस पर हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
४०
भिखारी के भिक्षापात्र सा यह जीवन,
पद, प्रतिष्ठा, हीरे-जवाहरात चाहे मिले जितना भी धन |
लेकिन वह खाली का खाली और-और करता हरदम,
तोड़ भिक्षापात्र लुटा सकें प्यार का खजाना यदि सम्राट बन –
तो सफल होगा यह जीवन |
४१
‘भूत’ का दानव रात में सोने नहीं देता,
‘भविष्य’ का सपना दिन में चैन से रहने नहीं देता |
‘आज’ जो मेरा अपना मगर, यह मन जिसे जीने नहीं देता,
जान कर यह सच जी सकें बस दृष्टा बन यदि हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
४२
शतरंज सा बिछा रखा ‘तूनें’ यह सारा जग,
हाथी-घोड़े, राजा-रानी, ऊंट-प्यादे, से हम सभी बस |
जितने की चाह में लड़-मर रहे आपस में सब,
जानकार तेरी बिछावत, जीत लें बाजी यदि हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
४३
जीवन के दो पलड़े, एक नरक एक स्वर्ग,
करती रहती जिससे हमारी, यह तराजू हरदम डगमग |
समतोल कर यदि यह तराजू,
स्थिर कांटा जीवन का कर सकें हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
४४
छोटे-बड़े बल्ब व ट्यूब से हम जल रहे सब,
जिसमे प्रहावित हो रही तेरी ही विद्युत बस |
‘फ्यूज’ होने से पहले जिसे पहचान कर,
रोशनी फैला तेरी दूर कर सकें अज्ञान का तम यदि हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
४५
प्रभु ने दिया स्वभाव हमें जैसे चन्दन,
लेकिन उसे भुजंग बनाने में लगे हम |
जान स्व-स्वभाव, द्वेष का विष उगलना छोड़कर,
प्यार की महक निर्भेद हो फैला सकें यदि हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
४६
दूसरों को फ़साने बना रहा मकड़ी सा जाला,
उलझा रहा जिसमें सदैव, बाहर कभी निकल न पाया |
और एकदिन स्वयं को ही उसमें फँसामृत पाया,
समझ सभी जालों के चक्कर इस जनम,
काट उन्हें स्वतन्त्र हो सकें यदि हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
४७
फलों से लदे, झुके वृक्षों सा यह जीवन,
काँटों से भरा जिसे बनाने में लगे हम |
जान अपनी असलियत, छोड़ कर देना चुभन,
पत्थर मारनेवालों को भी दे सकें मधुर फल यदि हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
४८
यह मेरी जमीन, मेरा घर, यह तेरी जमीन, तेरा घर,
कोई ईसाई, कोई मुसलमान, कोई हिन्दू,
किसीका ईसा, किसी का अल्लाह, किसी का ईश्वर,
अपने-अपने घेरे बना बैठे हुए हम सब |
समझ उनकी असलियत यदि तोड़ सकें ये घेरे इस जनम –
तो सफल होगा यह जीवन |
४९
इधर-उधर, उछल-कूद करता यह मन,
जिसकी वजह से दौड-भाग करते फिर रहे हम |
जिन्न से इस मन को विवेक के चिराग में कैद कर,
गुलाम बना, जब जरूरत बाहर निकाल सकें यदि हम -
तो सफल होगा यह जीवन |
५०
सुख-दुख दो छोर, मन है एक पेंडुलम,
जो डोलता ही रहता इधर से उधर हरदम |
द्वंदों के जाल में न फस बस दृष्टा बन,
देख सकें सब अकम्पित मन यदि हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
५१
सुख-दुख, जीत-हार सभी द्वन्द,
लहरों से उठते-मिटते रहते हरदम |
बदलते जो रूप, कभी ज्वार, कभी भाटा, कभी तूफ़ान बन,
लेकिन अन्दर से सागर सा थिर, गंभीर, अविकार रह सकें यदि हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
५२
मौम सा नरम, नाजुक यह मन,
पाषाण सा कठोर बनाने में जिसे लगे हम |
प्यार की आँच से जिसको पिघला,
निर्मल पानी सा स्वच्छ हो जानें दें उसे यदि हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
५३
कर्म बीज बन पड़े हुए, उगने को तैयार,
केवल सही समय का उन्हें होता इंतजार |
तपा कर उन्हें निष्फल कर सकें हम यदि इस जनम –
तो सफल होगा यह जीवन |
५४
दर्पण झूठ नहीं बोलता, निर्भेद हो दिखता हरदम सच,
यदि तोड़ दें उसे तो उसका हर टुकड़ा भी दिखाता है केवल सच|
निर्द्वन्द हो दर्पण सा समदृष्टा हो सकें यदि हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
५५
रस्सी में गाँठ सा दीखता यह माया जग,
जिसका अस्तित्व नहीं फिर भी वह लगता सच |
जान इसे खोल गाँठ पहचान सकें रस्सी सा चेतन यदि हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
५६
सबसे अपनी तारीफ पाने को करता यह मन,
यदि हो जय-जयकार, बड़ाई तो बढता अहम् |
यदि न मिले तो आता घुस्सा, मूढ़-भाव हरदम,
रह सकें हर परिस्थिति में सम यदि हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
५७
मैं करता, मैं जानता है यह माया बस अहम्,
भूल जाता एकदिन उनका भी होगा मरण |
जान यह सच निस्वार्थ ही करें निष्काम कर्म यदि हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
५८
नदी के प्रवाह सा बहता ही रहता यह जीवन,
जिसमें अविरत रूप से हो रहे परिवर्तन |
सुख-दुख, आशा-निराशा दो किनारे से, सभी द्वन्द,
जान इनकी असलियत छोड़ दें मोह-माया इनके प्रति यदि हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
५९
निर्मल-स्वच्छ दिया प्रभु ने हमको यह मन,
कचरा भर-भर कूडादान बना रहे जिसको हम |
निस्वार्थ प्रेम-जल से धोकर इसे,
काँच सा पारदर्शीय बना सकें यदि हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
६०
अपनी मनो-दशा के चश्मों से देखते हम यह जग,
जैसा हम सोच रहे होते बस वही हमें लगता है सच |
उतार सभी द्वंदों के चश्में हो अमन,
जान सकें असली सच यदि हम इस जनम –
तो सफल होगा यह जीवन |
६१
रिश्ते-नाते, धन-दौलत सब जरूरत एक संग,
चाहे कितना भी गहरा हो,उड़ ही जाता बाहरिय रंग |
सिर्फ़ दिखावटी रंगों ही में न फस कर,
जान सकें जीवन के असली व पक्के रंग यदि हम –
तो सफल होगा यह जीवन |
६२
जीवन वृक्ष की जड़ सा जो है चेतन,
उसे एकदम जड़ बनाने में लगे हम |
सिर्फ़ बाहर दीख रही फूल-फल-पत्तियों पर ध्यान देना छोड़ कर,
जीवन के मूल को पहचान सकें यदि हम इस जीवन,
तो सफल होगा यह जीवन |
६३
मक्खी सा भटकता रहता सदा यह मन,
जो कभी मीठे तो कभी विष्ठा पर भागता हरदम,
छोड़ सभी काम-वासना कि दुर्गन्धि विष्ठा,
बना सकें मधुमक्खी सी सिर्फ़ सत्कर्मों की शहद ही यदि हम,
तो सफल होगा यह जीवन |
६४
सच, प्रेम, आनन्द के रत्नों से भरा, मिट्टी के खिलौने सा यह तन,
जिसे व्यर्थ ही फेंक, झूँठ, घृणा,स्वार्थ,गुस्से के पत्थरों से भर रहे हम,
इस खिलौने के टूटने से पहिले, जान अपने असली अनमोल रत्नों को,
बाँट उन्हें निस्वार्थ ही, दूसरों के चेहरों पर खुशियाँ ला सकें यदि हम,
तो सफल होगा यह जीवन |
६५
जंजीरों में जकड़े हुए हैं यहाँ हम सब,
कोई पाप की लोहे की जंजीरों से मुक्त होने को रहा तड़फ,
किसी ने पुण्य व सत्व की सोने कि जंजीरों को पहन रखा -
स्वतः ही आभूषण समझ,
जान कर इन जंजीरों की असलियत, तोड़ सकें उन्हें यदि इस जीवन,
तो सफल होगा यह जीवन |
६६
दीवार पर लगाये रंगों से होते हैं सम्बन्ध,
जो बदलते ही रहते हैं समय के साथ हरदम,
कभी काले, सफ़ेद, रंगबिरंगे, कभी खुशी कभी गम,
उतार सभी पपड़ियाँ इन रंगों की,
दीवार को उसके असली रंग में ही रह जाने दे यदि हम,
तो सफल होगा यह जीवन |
६७
जब नियति कुछ करवाना चाहती है हमसे,
तो परिस्थितियाँ स्वतः ही वैसे ही बदले,
हो जिसके परवश हम करते हैं वह सब,
हो सचेत बन साक्षी देख सकें वह सब अविचलित यदि हम,
तो सफल होगा यह जीवन |
६८
जो भी लिखता मेरा नहीं कुछ भी उसमें,
ईश की प्रेरणा लिखवा रही सब |
स्वान्तःसुखाय लिखित रचनाऍ सभी ये,
कर सकें किसी का यदि पथ-प्रदर्शन –
तो सफल होगा यह जीवन |
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