आधे-अधूरे
हर पुरुष,
चाहता है,
अपनी स्त्री में,
अलग-अलग,
हजारों नारियों
की,
एक साथ,
विशेषता |
हर नारी,
चाहती है,
अपने मर्द में,
अलग-अलग पुरुषों की,
एक साथ,
क्षमता |
जो नहीं सम्भव,
इस जग में,
किसी को भी,
वो चाहे द्रोपदी
हो, या-
लीलामयी गोविन्दा
|
इस जग में,
कोई भी नहीं होता है पूर्ण,
और ना ही होता है,
किसी में भी,
जो जैसा है,
उसके प्रति,
स्वीकार्य भाव,
इसीलिए,
भटकता रहता है,
वह सदा,
इधर से उधर,
जीवन भर,
आधे-अधूरे सा |
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