मेरा भारत महान
जब तक दावानल सी बढ़ती, जानलेवा भूख,
और अकाल में सूखी धरती सी, प्यास बनी रहेगी |
जब तक ठण्ड सा ठिठुरता, गरीब का नंगापन,
और बाढ़ की तरह फैलता, आतंकवाद रहेगा |
जब तक टीवी पर विज्ञापनों की तरह, बढ़ती बेरोजगारी,
और भूकम्प की तरह निगल जाने वाली, बीमारियाँ रहेंगी |
जब तक ‘पाल्यूशन’ की तरह फैलता, दमघुटाऊ भ्रष्टाचार,
व ‘चाइनीज-नूडल्स’ सा अपने आप में उलझा, सरकारी-तंत्र रहेगा |
जब तक महानगरों की बड़ी-बड़ी गटरों सी, बड़ी-बड़ी राजनैतिक पार्टियाँ,
फैक्टरियों की तरह धर्म व जातिवाद का, दूषित जहर उगलती रहेंगी |
जब तक योजनाओं के चलचित्र की प्रगति के बीच,
रिश्वत के बढ़े-बढ़े ‘कमर्शियल-ब्रेक’ आते रहेंगे |
जब तक अय्याशी व नंगी विलासिता के भूखे भेडिये,अपनी रंगीनियों के लिए,
व्यभिचार को कला व आधुनिकता के परिधान में लपेटते रहेंगे |
और जब तक प्लास्टिक की गन्दी थेलियों की तरह, बिखरे-फैले ये नेता,
अपने अस्तित्व के लिए, देश को बंजर बनाते रहेंगे |
तब तक ‘राम-राज्य’ सा मेरा ‘सुनहरा-भारत’ एक दुखद स्वप्न ही रहेगा |
तब तक यह मजबूर, नग्न ‘केबरे-डांसर’ की तरह लुभाता,
कुण्ठित, भयानक सत्य ही रहेगा |
तब तक यह गटर के इकट्ठे, रुके पानी में,
चाँद पकड़ने की नाकाम कोशिश ही रहेगी |
तब तक यह नेताओं के वादों सी, मृगमरीचिका ही रहेगी |
हे मेरे देश की जानबूझ कर, अन्जान बनी जनता,
क्या यही है ‘जय-जवान’, ‘जय-किसान’, ‘जय-विज्ञान’ ?
और क्या ऐसे ही बनेगा, ‘मेरा भारत महान’ ???
वाकई यही तो है मेरा भारत महान...
ReplyDeleteक्या हिन्दी चिट्ठाकार अंग्रेजी में स्वयं को ज्यादा सहज महसूस कर रहे हैं ?
वास्तविकता से सबको रुबरु कराया है आपने....बहुत सुंदर आलेख
ReplyDeleteबहुत कुछ सोचने को विवश करता है !!
'द्वारकेश ' जी! कृपया वर्ड वेरिफिकेसन हटा दें
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