Sunday, July 3, 2011

पूर्णांगिनी


      पूर्णांगिनी
मैं अधूरा सा भटकता फिर रहा था,
एक भ्रमर सा |
कभी एक तो कभी दूसरे,
रंग-बिरंगे फूल पर,
मचलता था मन मेरा |
कभी एक तो कभी दूसरी,
खुशबू लुभाती थी मुझे |
मैं असमंजस में पड़ा,
यों ही भटकता फिर रहा था,
बस अधूरा |
फिर मिली तुम,
और वे रंग-सौरभ,
जिन्हें मैं,
खोजता फिर रहा था,
सब तुममें मिल गए |
और फिर जो,
मैं अधूरा सा था अब तक,
अचानक ही पूर्णता पा गया |
इसलिए,
वे लोग जो कहते तुम्हें अर्धांगिनी,
हैं गलत,
सत्यता में,
तुम तो हो,
बस मेरी पूर्णांगिनी |

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